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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किशन सरोज }} <poem> कसमसाई देह फिर चढ़ती नदी की देखि…
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{{KKRachna
|रचनाकार=किशन सरोज
}}
<poem>
कसमसाई देह फिर चढ़ती नदी की
देखिए तटबंध कितने दिन चले
मोह में अपनी मंगेतर के
समंदर बन गया बादल
सीढियाँ वीरान मंदिर की
लगा चढ़ने घुमड़ता जल
काँपता है धार से लिप्त हुआ पुल
देखिए सम्बन्ध कितने दिन चले
फिर हवा सहला गई माथा
हुआ फिर बावला पीपल
वक्ष से लग घाट के रोई
सुबह तक नाव हो पागल
डबडबाए दो नयन फिर प्रार्थना के
देखिए सौगंध कितने दिन चले
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=किशन सरोज
}}
<poem>
कसमसाई देह फिर चढ़ती नदी की
देखिए तटबंध कितने दिन चले
मोह में अपनी मंगेतर के
समंदर बन गया बादल
सीढियाँ वीरान मंदिर की
लगा चढ़ने घुमड़ता जल
काँपता है धार से लिप्त हुआ पुल
देखिए सम्बन्ध कितने दिन चले
फिर हवा सहला गई माथा
हुआ फिर बावला पीपल
वक्ष से लग घाट के रोई
सुबह तक नाव हो पागल
डबडबाए दो नयन फिर प्रार्थना के
देखिए सौगंध कितने दिन चले
</poem>