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कातिक का पयान / त्रिलोचन
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23:32, 21 फ़रवरी 2010
|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
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कातिक पयान करने को है, उठाया है
दाहिना चरण, देहरी को लाँघ आया है,
लेकिन अँगूठा अभी भूमि से लगा नहीं,
ऊपर ही ऊपर है, जैसे जगा नहीं
.
।
</poem>
अनिल जनविजय
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