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<poem>भाग्य चक्र नित चलता है कर्मों की गति न्यारी है
रोता हो या हँसता हो भाग्य चक्र नित जारी है

फिरता है किसी के पहलू में संसार यह सारा
रोता है किसी की फ़ुर्क़त में बदहाल बेचारा

कर्मों का फल भोग रहा पापी नाबीना
दुनिया का दौर निराला पलभर का पसारा

बीता बचपन आई जवानी आई जवानी क्या दीवानी
दुनिया बन्धन है इक धोखा प्रेम अमर है और लाफ़ानी</poem>
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