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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>कब तक मलूँ जबीं से उस संग-ए-दर को मैं
बेकसी संभाल, उठाता हूँ सर को मैं
किस किस को हाय, तेर तेरे तग़ाफ़ुल का दूँ जवाब अक्सर तो रह गया हूँ , झुका कर नज़र को मैं
अल्लाह रे वो आलम-ए-रुख्सत के कि देर तक
तकता रहा हूँ यूँ ही तेरी रेहगुज़र को मैं
ये शौक़-ए-कामयाब, ये तुम, ये फ़िज़ा, ये रात
कह दो तो आज रोक दूँ बढ़कर सहर को मैं
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