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आराइश-ए-ख़याल भी हो / नासिर काज़मी
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03:02, 23 फ़रवरी 2010
इस रंज-ए-बेख़ुमार की अब इंतहा भी हो
ये क्या
के
कि
एक तौर से गुज़रे तमाम उम्र
जी चाहता है अब कोई तेरे सिवा भी हो
Sandeep Sethi
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