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Kavita Kosh से
ये धोखा भी खा कर देखो|
दूरी में क्या भेद <ref>राज़</ref> छिपा है,
इसकी खोज लगाकर देखो|
किसी अकेली शाम की चुप में,
जाग-जाग कर उम्र कटी है,
नींद के द्वार <ref>दरवाजा</ref> हिलाकर देखो| [द्वार=दरवाज़ा]
</poem>
{{KKMeaning}}