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<font size=4>सप्तम सर्ग</font><br><br>
सन्देश यही¸ उपदेश यही <Br/>
कहता है अपना देश यही। <Br/>
मरने कटने का क्लेश नहीं <Br/>
कम हो सकता आवेश नहीं।।30।। <Br/><Br/>
परवाह नहीं¸ परवाह नहीं <Br/>
मैं हूं फकीर अब शाह नहीं। <Br/>
मुझको दुनिया की चाह नहीं <Br/>
सह सकता जन की आह नहीं।।31।। <Br/><Br/>
अरि सागर¸ तो कुम्भज समझो <Br/>
बैरी तरू¸ तो दिग्गज समझो। <Br/>
आंखों में जो पट जाती वह <Br/>
मुझको तूफानी रज समझो।।32।। <Br/><Br/>
यह तो जननी की ममता है <Br/>
जननी भी सिर पर हाथ न दे। <Br/>
मुझको इसकी परवाह नहीं <Br/>
चाहे कोई भी साथ न दे।।33।। <Br/><Br/>
विष–बीज न मैं बोने दूंगा <Br/>
अरि को न कभी सोने दूंगा। <Br/>
पर दूध कलंकित माता का <Br/>
मैं कभी नहीं होने दूंगा।्"।।34।। <Br/><Br/>
प्रण थिरक उठा पक्षी–स्वर में <Br/>
सूरज–मयंक–तारक–कर में। <Br/>
प्रतिध्वनि ने उसको दुहराया <Br/>
निज काय छिपाकर अम्बर में।।35।। <Br/><Br/>
पहले राणा के अन्तर में <Br/>
गिरि अरावली के गह्वर में। <Br/>
फिर गूंज उठा वसुधा भर में <Br/>
वैरी समाज के घर–घर में।।36।। <Br/><Br/>
बिजली–सी गिरी जवानों में <Br/>
हलचल–सी मची प्रधानों में। <Br/>
वह भीष्म प्रतिज्ञा घहर पड़ी <Br/>
तत्क्षण अकबर के कानों में।।37।। <Br/><Br/>
प्रण सुनते ही रण–मतवाले <Br/>
सब उछल पड़े ले–ले भाले। <Br/>
उन्नत मस्तक कर बोल उठे <Br/>
्"अरि पड़े न हम सबके पाले।।38।। <Br/><Br/>
हम राजपूत¸ हम राजपूत¸ <Br/>
मेवाड़–सिंह¸ हम राजपूत। <Br/>
तेरी पावन आज्ञा सिर पर¸ <Br/>
क्या कर सकते यमराज–दूत।।39।। <Br/><Br/>
लेना न चाहता अब विराम <Br/>
देता रण हमको स्वर्ग–धाम। <Br/>
छिड़ जाने दे अब महायुद्ध <Br/>
करते तुझको शत–शत प्रणाम।।40।। <Br/><Br/>
अब देर न कर सज जाने दे <Br/>
रण–भेरी भी बज जाने दे। <Br/>
अरि–मस्तक पर चढ़ जाने दे <Br/>
हमको आगे बढ़ जाने दे।।41।। <Br/><Br/>
लड़कर अरि–दल को दर दें हम¸ <Br/>
दे दे आज्ञा ऋण भर दें हम¸ <Br/>
अब महायज्ञ में आहुति बन <Br/>
अपने को स्वाहा कर दें हम।।42।। <Br/><Br/>
मुरदे अरि तो पहले से थे <Br/>
छिप गये कब्र में जिन्दे भी¸ <Br/>
'अब महायज्ञ में आहुति बन्'¸ <Br/>
रटने लग गये परिन्दे भी।।43।। <Br/><Br/>
पौ फटी¸ गगन दीपावलियां <Br/>
बुझ गई मलय के झोंकों से। <Br/>
निशि पश्चिम विधु के साथ चली <Br/>
डरकर भालों की नोकों से।।44।। <Br/><Br/>
दिनकर सिर काट दनुज–दल का <Br/>
खूनी तलवार लिये निकला। <Br/>
कहता इस तरह कटक काटो <Br/>
कर में अंगार लिये निकला।।45।। <Br/><Br/>
रंग गया रक्त से प्राची–पट <Br/>
शोणित का सागर लहर उठा। <Br/>
पीने के लिये मुगल–शोणित <Br/>
भाला राणा का हहर उठा।।46।। <Br/><Br/>