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== शीर्षक ==
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{{KKRachna
|रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी
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हां इधर को भी ऐ गुंचादहन पिचकारी।
देखें कैसी है तेरी रंगविरंग पिचकारी।।

तेरी पिचकारी की तकदीद में ऐ गुल हर सुबह।
साथ ले निकले हैं सूरज की किरन पिचकारी।।

जिस पे हो रंग फिशां उसको बना देती है।
सर से ले पांव तलक रश्के चमन पिचकारी।।

बात कुछ बस की नहीं वर्ना तेरे हाथों में।
अभी आ बैठें यहीं बनकर हमतंग पिचकारी।।

हो न हो दिल ही किसी आशिके शैदा का नजीर।
पहुंचा है हाथ में उसके बनकर पिचकारी।।