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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>हुई ताख़ीर<ref>देर</ref> तो कुछ बाइसे<ref>कारण</ref>-ताख़ीर भी था
आप आते थे, मगर कोई इनांगीर<ref>रास्ता रोकनेवाला</ref> भी था
हुई ताख़ीर तो तुम से बेजा<ref>बेकार</ref> है मुझे अपनी तबाही का गिला इसमें कुछ बाइसशाइबा-ए-ताख़ीर भी था ख़ूबी-ए-तक़दीर<brref>आप आते थे मगर कोई इनाँगीर भी था सौभाग्य की झलक<br><br/ref>भी था
तुम से बेजा है तू मुझे अपनी तबाही भूल गया हो, तो पता बतला दूँ कभी फ़ितराक<ref>शिकारी का गिला झोला<br/ref>उस में कुछ शाइब-ए-ख़ूबी-ए-तक़दीर भी था तेरे कोई नख़चीर<brref>शिकार<br/ref>भी था
तू मुझे भूल गया हो तो पता बतला दूँ <br>कभी फ़ितराक क़ैद में थी तेरे कोई नख़्चीर भी था वहशी को वही ज़ुल्फ़ की याद हां कुछ एक रंज-ए-गिरांबारि-ए-ज़ंजीर<brref>बेड़ीओ के बोझ का रंज<br/ref>भी था
क़ैद में थी तेरे वहशी को तेरी ज़ुल्फ़ की याद <br>बिजली इक कौंध गई आँखों के आगे, तो क्या हाँ कुछ एक रंजबात करते, कि मैं लब-ए-गिराँबारितश्ना-ए-ज़ंजीर भी था तक़रीर<brref>भाषण सुनने के तिए उत्सुक<br/ref>भी था
बिजली एक कौंध गई आँखों के आगेयूसुफ़ उस को कहूँ, और कुछ न कहे, ख़ैर हुई गर बिगड़ बैठे तो क्या <br>बात करते, कि मैं लब तश्नालायक़-ए-तक़रीर भी था ताज़ीर<brref>दण्ड का भागी<br/ref>भी था
यूसुफ़ उस देखकर ग़ैर को कहूँ और कुछ हो क्यों कहेकलेजा ठंडा नाला करता था वले, ख़ैर हुई <br>गर बिगड़ बैठे तो मैं लायक़तालिब-ए-ता'ज़ीर भी था तासीर<brref>प्रभाव चाहने वाला<br/ref>भी था
देख कर ग़ैर पेशे में ऐब नहीं, रखिये न फ़रहाद को क्यूँ हो न कलेजा ठंडा <br>नाम नाला करता था वले तालिबहम ही आशुफ़्ता-ए-तासीर भी था सरों<brref>सौदाई<br/ref>में वो जवां-मीर भी था
पेशे में ऐब नहींहम थे मरने को खड़े, रखिये पास फ़रहाद को नाम <br>आया न सही हम ही आशुफ़्तासरों आखिर उस शोख़ के तरकश में वो जवाँ मीर कोई तीर भी था <br><br>
हम थे मरने को खड़े पास न आया न सही <br>आख़िर उस शोख़ पकड़े जाते हैं फ़रिश्तों के तरकश में लिखे पर नाहक़ आदमी कोई तीर हमारा दमें-तहरीर भी था <br><br>
पकड़े जाते हैं फ़रिश्तों के लिखे पर नाहक रेख़ती<brref>आदमी कोई हमारा दम-ए-तहरीर भी था शायरी की एक किस्म<br/ref><br> रेख्ता के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो "ग़ालिब" <br>कहते हैं अगले ज़माने में कोई "मीर" भी था <br><br/poem>{{KKMeaning}}
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