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09:13, 27 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
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बैस नई, अनुराग मई, सु भई फिरै फागुन की मतवारी ।
कौंवरे हाथ रचैं मिंहदी, डफ नीकैं बजाय रहैं हियरा रीन ॥
साँवरे भौंर के भाय भरी, ’घनाआनँद’ सोनि में दीसत न्यारी ।
कान्ह है पोषत प्रान-पियें, मुख अंबुज च्वै मकरंद सी गारी ॥
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