Changes

बैस नई, अनुराग मई / घनानंद

637 bytes added, 09:13, 27 फ़रवरी 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} <poem> बैस नई, अनुराग मई, सु भई फिरै फागुन की …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
}}
<poem>
बैस नई, अनुराग मई, सु भई फिरै फागुन की मतवारी ।
कौंवरे हाथ रचैं मिंहदी, डफ नीकैं बजाय रहैं हियरा रीन ॥
साँवरे भौंर के भाय भरी, ’घनाआनँद’ सोनि में दीसत न्यारी ।
कान्ह है पोषत प्रान-पियें, मुख अंबुज च्वै मकरंद सी गारी ॥
</poem>
916
edits