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|रचनाकार=घनानंद
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<poem>
दसन बसन बोली भरि ए रहे गुलाल
:हँसनि लसनि त्यों कपूर सरस्यौ करै ।
साँसन सुगंध सौंधे कोरिक समोय धरे,
:अंग-अंग रूप-रंग रस बरस्यौ करै ॥
जान प्यारी तो तन ’अनंदघन’ हित नित,
:अमित सुहाय आग फाग दरस्यौ करै ।
इतै पै नवेली लाज अरस्यौ करै, जु प्यारौ -
:मन फगुवा दै, गारी हू कों तरस्यौ करै ॥
</poem>
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