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|रचनाकार = रसखान
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फागुन लाग्यौ सखि जब तें, तब तें ब्रजमंडल धूम मच्यौ है ।

नारि नवेली बचै नहीं एक, विसेष इहैं सबै प्रेम अँच्यौ है ॥

साँझ-सकारे कही रसखान सुरंग गुलाल लै खेल रच्यौ है ।

को सजनी निलजी न भई, अरु कौन भटू जिहिं मान बच्यौ है ॥
</poem>
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