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<poem>
तब न सिधारी साथ, मीड़त है अब हाथ,
सेनापति जदुनाथ बिना दुख ए सहैं ।
चलैं मनोरंजन के, अंजन की भूली सुधि,
मंजन की कहा, उनहीं के गूँथे केस हैं ॥
बिछुरैं गुपाल, लागै फागुन कराल तातें -
भई है बेहाल, अति मैले तन भेस हैं ।
फूल्यौ है रसाल, सो तौ भयौ उर साल,
सखी डार न गुलाल, प्यारे लाल परदेस हैं ॥
</poem>
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