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खेलत फाग सुहाग भरी / रसखान

3 bytes removed, 13:46, 27 फ़रवरी 2010
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खेलत फाग सुहाग भरी, अनुरागहिं लालन क धरि कै ।
 
भारत कुंकुम, केसर की पिचकारिन में रंग को भरि कै ॥
 
गेरत लाल गुलाल लली, मनमोहन मौज मिटा करि कै ।
 
जात चली रसखान अली, मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥
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