भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सानूं गल नाल लाजा वे
मेरा सोहणा माही, आजा वे
</poem>||width="300" bgcolor="greenCEF0FF"|<poem>मिटटी दा मैं बावा बनाणीआं
उत्ते चा दिन्नी आं खेसी
वतनां वाले माण करन