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पनघट पै मुरलिया बाजे{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=इंदीवर}}[[Category:गीत]]<poem>मुझे नहीं पूछनी तुमसे बीती बातेंकैसे भी गुज़ारी हों तुमने अपनी रातेंजैसी भी हो बस आज से तुम मेरी होमेरी ही बनके रहना, अ हा हा हा पन घट पै मुरलिया बाजे।मुझे तुमसे है इतना कहनामुझे नहीं पूछनी ...
मोहन के मुख बाँस की पोरी साँच कहूँ बहु साजे।। पनघट पैबीते हुए कल पे तुम्हारे अधिकार नहीं है मेराउस द्वार पे मैं क्यों जाऊँ जो द्वार नहीं है मेराबीता हुआ कल तो बीत चुका, कल का दुख आज ना सहनामुझे नहीं पूछनी ...
मैं राम नहीं हूँ फिर क्यूं उम्मीद करूँ सीता कीएक ओर जमुना लहराए, दूजे मोर बन शोर मचाए। बीच कोई इन्सानों में श्याम विराजे । पनघट पै...ढूँढे क्यों पावनता गंगा की  टेर सुनी बिजली मुस्काई, घन दुनिया में घोर घटा है छाई। घाट पार फ़रिश्ता कोई खड़ी पुकारेनहीं, मन के बादल गाजे।। पनघट पैइन्सान ही बनके रहनामुझे नहीं पूछनी ...</poem>
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