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मैं राम नहीं हूँ फिर क्यूं उम्मीद करूँ सीता कीएक ओर जमुना लहराए, दूजे मोर बन शोर मचाए। बीच कोई इन्सानों में श्याम विराजे । पनघट पै...ढूँढे क्यों पावनता गंगा की टेर सुनी बिजली मुस्काई, घन दुनिया में घोर घटा है छाई। घाट पार फ़रिश्ता कोई खड़ी पुकारेनहीं, मन के बादल गाजे।। पनघट पैइन्सान ही बनके रहनामुझे नहीं पूछनी ...</poem>