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आता लबों पे {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=इंदीवर}}[[Category:गीत]]<poem>प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरोसमदरसी है नाम तेरा बार-बार क्यूँ?तुम्हारो, नाम की लाज करोप्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो..
है रोज़ सुबह शाम तेरा इंतज़ार क्यूँ।।एक नदी एक नाला कहाय, मैल हो नीर भरोगंगा में मिल कर दोनों, गंगा नाम परोप्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो..
::नाजुक तरी निगाहकाँटे और कलियाँ दोनों से, बड़े नाज की पली। ::ऎसी भली निगाह से दिल का शिकार क्यूँ।।मधुबन रहे भरोमाली एक समान ही सीँचे, कर दे सबको हरोप्रभु जी मेरे क़रीब आ तू मेरे और भी क़रीब।अवगुन चित ना धरो..दो दिल न मिल सके तो हुईं आँखें चार क्यूँ।।</poem>