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दर्पण को देखा तूने / इंदीवर

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'''गीतकार {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=इंदीवर}}[[Category: कैफ़ी आजमीगीत]]<poem>दर्पण को देखा तूने जब जब किया श्रृंगारफूलों को देखा तूने जब जब आई बहारएक बदनसीब हूँ मैं मुझे नहीं देखा एक बार
सूरज की पहली किरनों को
देखा तूने अलसाते हुए
रातों में तारों को देखा
सपनों में खो जाते हुए
यूँ किसी न किसी बहाने
तूने देखा सब संसार
खेलो ना मेरे दिल से, ओ मेरे साजना, (ओ साजना -२)काजल की क़िस्मत क्या कहिये खेलो ना, खेलो ना, मेरे दिल से, खेलो ना ...  मुस्कुराके देखते तो हो मुझे, ग़म नैनों में तूने बसाया है किस लिये निगाह में, आँचल की क़िस्मत क्या कहियेमंज़िल अपनी तुम अलग बसाओगे, मुझको छोड़ दोगे राह में , प्यार क्या दिल्लगी, प्यार क्या खेल तूने अंग लगाया है खेलो ना ...  क्यूँ नज़र मिलाई थी लगाव से, हँसके हसरत ही रही मेरे दिल मेरा लिया था क्यूँ ,मेंबनूँ तेरे गले का हारक्यूँ मिले थे ज़िन्दगी के मोड़ पर, मुझको आसरा दिया था क्यूँ  प्यार क्या दिल्लगी, प्यार क्या खेल है खेलो ना ...   खेलो ना मेरे दिल से, ओ मेरे साजना...........</poem>
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