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कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएं मगर,
जंगल तेरे पर्बत पर्वत तेरे बस्ती तेरी सहरा तेरा|
तू बेवफ़ा तू मेहरबां हम और तुझ से बद-गुमां,
अल्ताफ़ की बारिश तेरी अक्राम का दरिया तेरा|
हाँ हाँ तेरी सूरत हँसी हंसी लेकिन तू ऐसा भी नहीं,
इस शख्स के अशार से शोहरा हुआ क्या क्या तेरा|
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