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'''गीतकार : {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=शैलेन्द्र सिंह}}[[Category:गीत]]<poem>मन भावन के घर जाए गोरी घूँघट में शरमाए गोरी बंधी रहे ये प्यार की डोरी हमें ना भुलाना...
बचपन के दिन खेल गंवाए
आई जवानी तो बालम आए
तेरे आंगन बंधे बधाई गोरी
क्यों नैना छलकाए गोरी
हमें ना भुलाना...
ऐ मेरे दिल कहीं और चलइस दुनिया की रीत यही है हाथ जो थामे मीत वही है अब हम तो हुए पराए गोरी फिर तेरे संग जाए गोरीहमें ना भुलाना...
ग़म की दुनिया से दिल भर गयामस्ती भरे सावन के झूले तुझको कसम है जो तू भूले ढूंढ ले अब कोई घर नया ऐ मेरे दिल कहीं और चल  चल जहाँ गम के मारे न हों झूठी आशा के तारे न हों झूठी आशा के तारे न हों इन बहारों से क्या फ़ायदा जिस में दिल की कली जल गई ज़ख़्म फिर से हरा हो गया ऐ मेरे दिल कहीं और चल  चार आँसू कोई रो दिया फेर के मुँह कोई चल दिया फेर के मुँह कोई चल दिया लुट रहा था किसी का जहाँ देखती रह गई ये ज़मीं चुप रहा बेरहम आसमांजब वापस आए गोरी गोद भरी ले आए गोरीहमें ना भुलाना...ऐ मेरे दिल कहीं और चल</poem>
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