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जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग<br />{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=शैलेन्द्र}}[[Category:गीत]]एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग<br /poem>राजा की आएगी बारात, रंगीली होगी रातमगन मैं नाचूंगी, हो मगन मैं नाचूंगीराजा की आएगी बारात ...
याद रहता है किसे गुज़रे ज़माने का चलन<br />राजा के माथे तिलक लगेगा, रानी की माँग सिन्दूरसर्द पड़ जाती है चाहत हार जाती है लगन<br />अब मोहब्बत मैं भी है क्या इक तिजारत अपने मन की आशा, पूरी करूंगी ज़रूरमेंहदी से पीले होंगे हाथ, सहेलियों के सिवा<br />साथहम ही नादां थे जो ओढ़ा बीती यादों का क़फ़न<br />मगन मैं नाचूंगी, हो मगन मैं नाचूंगीवरना जीने के लिए सब कुछ भुला देते हैं लोग<br />राजा की आएगी बारात ...
जाने वो क्या लोग थे जिनको वफ़ा का पास था<br />रानी के संग राजा डोले सजाके, चले जाएंगे परदेसदूसरे के जब जब उनकी याद आएगी, दिल पे क्या गुज़रेगी ये एहसास था<br />लगेगी ठेसअब हैं पत्थर के सनम जिनको एहसास ना नैनों से होगी बरसात, अन्धेरी होगी रातमगन मैं नाचूंगी, हो<br />मगन मैं नाचूंगीराजा की आएगी बारात ...वो ज़माना अब कहाँ जो अहल-ए-दिल को रास था<br /poem>अब तो मतलब के लिए नाम-ए-वफ़ा लेते हैं लोग
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