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अपने आप में संपूर्ण बीज
बीज में कोंपल
अनंत संभावनाएं संभावनाएँ
बेल या वृक्ष
फूल, फल यानी
पानी का
हवा का
धुप धूप का
सब मिले तो
संभावनाओं का सफ़र
बीज नष्ट भी होता है
चूहे खा जाते हैं
सीलन सडाती सड़ाती है उगी हुई कोम्पलेंकोंपलें
मिटटी की चद्दर पर पड़े भारी पैरों तले
रौंद जाती हैं
और संतृप्ति का एक सफ़र
शुरू होने से पहले ही
समाप्त हो जाता है.है।
इसी तरह
मोहताज है जिंदगी ज़िंदगी तेरी
प्रेम की, अपनत्व की
गर्भ में प्रत्यारोपण के के पूर्व से
उसे प्रेम और अपनत्व मिले
पर क्या यह सच है?
हर एक की जिंदगी ज़िंदगी
इत्तेभर की मोहताज नहीं होती
औरत जात की तो हरगिज नहीं!!!
उसका पूरा अस्तित्व ही मोहताजी है
हर चीज की चीज़ का मोहताजी बोलने की छूट कीकासोच की आजादी कीआज़ादी काहँसने के सुख की का रोने के हल्केपन की का खुले गले से तान लेने की का दबी जुबान में गुस्सा करने की का
पैदा होते ही लादा जाता है बोझ
घराने की इज्जत इज़्ज़त का
बाप की अपेक्षाओं का
भाई की उम्मीदों का
पुत्र की और पति की अपेक्षाओं का
जिम्मा ज़िम्मा दिया जाता है
रिश्तों को निभाने का
जमाने ज़माने की रीत को निभाने का
वह मोहताज है
समाज में रहते हुए समाज से बचने को
नजर नज़र न उठाते हुए नज़रों से बचने को
बुरा न बोलते हुए बुराई से बचने को
नियम, कायदेक़ायदे, कानून सब
उसके ही बलबूते पलते हैं
मुन्नी हो या मुन्नी की नानी हो
कितना कमाती है?
कमाई होनी चाहिए लेकिन
खर्चा ख़र्चा बिलकुल नहीं
औरत को बस
दो जून रोटी मिले
सर पर छत मिले
और क्या चाहिए?
और इन सब चीजों चीज़ों के लिए भी
वह मोहताज तो है ही
बिना कमाई के भी और अपनी कमाई के साथ भी
आजाद आज़ाद भारत की विदुषी नारी हो
या ठेठ गाँव की गोरी हो
आधे हाथ का घूंघट घूँघट काढ़े हो या
अधनंगी देह लिए घूमती हो
नियति सबकी एक है
जिन्दगी ज़िन्दगी स्त्री की मोहताज हैपुरुष की मर्जी मर्ज़ी की
घर टिके हैं
मोहताजी की उनकी स्वीकृति पर
सिसकती आत्मा से
पंक्ति में आखरी आख़िरी स्थान देने परझुक -झुक कर जी हजूरी हज़ूरी करने पर
स्त्री दुर्गा है, स्त्री काली है
स्त्री सीता है, स्त्री मंदोदरी है
झांसी झाँसी की रानी भी है
कृष्ण की दीवानी भी है
इंदिरा गाँधी भी है और उसकी बहु बहू भी हैइन गिनी -चुनी मिसालों को छोड़ दें तो
आज भी
जीवन भारतीय नारी का
एक दिन वह अपना
लिहाज लिहाज़ का चोला उतार कर
अस्मिता का खडग उठा लेगी
आत्मविश्वास के अश्व पर सवार होकर
सब कुछ अपने मुआफिक मुआफ़िक बनाने निकलेगी तो
सारे मील के पत्थर
हरहराकर गिर जायेंगे जाएँगे मोहताज नहीं रहेगी उसकी भी जिंदगीज़िंदगी
वह दिन भी आएगा!
</poem>
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