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दिपत दिवाकर कौं दीपक दिखावै कहा,
::तुम सन ज्ञान कहा जानि कहिबौ करैं ।
कहै रतनाकर पै लौकिक लगाव मानि,
::परम अलौकिक की थाह थहिबौ करैं ॥
असत असार या पसार मैं हमारी जान,
::जन भरमाये सदा ऐसैं रहिबौ करैं ।
जागत और पागत अनेक परपंचनि मैं,
::जैसें सपने मैं अपने कौं लहिबौ करैं ॥16॥
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