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[[Category:ग़ज़ल]]
घर जब बना लिया है तेरे दर पर कहे बग़ैर <br>जानेगा तू भी अब भी तू न मेरा घर कहे बग़ैर <br><br>
कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न <br>
जानूं किसी के दिल की मैं क्यूँकर क्योंकर कहे बग़ैर <br><br>
काम उस से उससे आ पड़ा है कि जिसका जहान में <br>
लेवे ना कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर <br><br>
जी में ही कुछ नहीं है हमारे , वगरना हम <br>सर जाये या रहे , न रहें पर कहे बग़ैर <br><br>
छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना <br>
छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़िर कहे बग़ैर <br><br>
चलता नहीं है, दश्ना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर <br><br>
बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर <br><br>