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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>की वफ़ा हमसे तो ग़ैर उसे जफ़ा कहते हैं
होती आई है कि अच्छों को बुरा कहते हैं
आज हम अपनी परीशानी-ए-ख़ातिर<ref>मन की वफ़ा हमसे तो ग़ैर उसे जफ़ा कहते हैंपरेशानी<br/ref> उनसे होती आई है के अच्छों को बुरा कहने जाते तो हैं, पर देखिए क्या कहते हैं <br><br>
आज हम अपनी परेशानीअगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो जो मै-एओ-ख़ातिर उन से नग़्मा<brref>कहने जाते तो हैं, पर देखिये क्या कहते हैं शराब और संगीत<br/ref>को अ़न्दोहरूबा<brref>दुःख-दर्द हरने वाला</ref> कहते हैं
अगले वक़्तों के हैं ये लोग, इन्हें कुछ न कहो <br>दिल में आ जाए है होती है जो फ़ुर्सत ग़म से जो मयऔर फिर कौन-ओ-नग़्में से नाले को अंदोहरूबा कहते हैं रसा<brref>प्रभावित करने वाला<br/ref>कहते हैं
दिल में आ जाए है, होती है जो फ़ुर्सत ग़श परे सरहदे-इदराक<ref>समझ की सीमा</ref> से अपना मस्जूद<brref>सिजदे का पात्र</ref>और फिर कौन से नाले क़िबले<ref>काबा</ref> को रसा कहते हैं? अहल-ए-नज़र क़िबलानुमा<brref>दिग्दर्शक यंत्र<br/ref>कहते हैं
पाए-अफ़गार<ref>पांव के घाव</ref> पे जब से तुझे रहम आया है परख़ार-ए-सरहद-ए-इदराक से अपना मस्जूद रह<brref>मार्ग का कांटा</ref>क़िब्ले को, अहलतेरे हम मेहर-ए-नज़र, क़िब्लानुमा कहते हैं गिया<brref>एक प्रकार की घास<br/ref>कहते हैं
पा-ए-अफ़गार पे जब से तुझे रहम आया इक शरर दिल में है <br>उससे कोई घबरायेगा क्या ख़ार-ए-राह को तेरे हम मेह्र-ए-गिया आग मतलूब है हमको जो हवा कहते हैं <br><br>
इक शरर दिल में देखिए लाती है, उस से कोई घबरायेगा क्या शोख़ की नख़वत<brref>घमण्ड</ref> क्या रंग आग मतलूब है हमको, जो हवा उसकी हर बात पे हम नाम-ए-ख़ुदा कहते हैं <br><br>
देखिये लाती है उस शोख़ की नख़्वत क्या रंग <br>उस की हर बात पे हम नाम-ए-ख़ुदा कहते हैं <br><br> वहशत-ओ-शेफ़्ता अब मर्सिया कहें कहवें शायद <br>मर गया "ग़लिब"ग़ालिब-ए-आशुफ़्तानवा आशुफ़्ता-नवा<ref>दुःखपूर्ण काव्य कहने वाला ग़ालिब</ref> कहते हैं<br><br/poem>{{KKMeaning}}