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शिकवे के नाम से बेमेहर ख़फ़ा होता है <br>
ये भी मत कह के , कि जो कहिये तो गिला होता है <br><br>
पुर हूँ मैं शिकवे शिकवा से यूँ , राग से जैसे बाजा <br>
इक ज़रा छेड़िये फिर देखिये क्या होता है <br><br>
गो समझता नहीं पर हुस्नहुस्ने-तलाफ़ी <ref>क्षति-पू्र्ति का सुँदर ढंग</ref> देखो <br>शिकवा-ए-जौर ज़ौर<ref>अत्याचार की शिकायत</ref> से सर-गर्मसरगर्म-ए-जफ़ा होता है <br><br>
इश्क़ की राह में है , चर्ख़-ए-मकौकब <ref>तारों भरा आसमान</ref> की वो चाल <br>सुस्त-रौ जैसे कोई आबलापा आबला-पा होता है <br><br>
क्यूँ न ठहरें हदफ़-ए-नावक-ए-बेदाद <ref>ज़िल्म के तीर के निशाने के लिए अर्पित</ref> कि हम <br>
आप उठा लाते हैं गर तीर ख़ता होता है <br><br>
ख़ूब ख़ूद था, पहले से होते जो हम अपने बद-ख़्वाह बदख़्वाह <br>के कि भला चाहते हं हैं और बुरा होता है <br><br>
नाला जाता था , परे अर्श अ़र्श से मेरा , और अब <br>लब तक आता है, जो ऐसा ही रसा होता है <br><br>{{KKMeaning}}
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