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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>शिकवे के नाम से बेमेहर ख़फ़ा होता है
ये भी मत कह, कि जो कहिये तो गिला होता है
शिकवे के नाम पुर हूँ मैं शिकवा से बेमेहर ख़फ़ा होता है <br>यूँ, राग से जैसे बाजा ये भी मत कह, कि जो कहिये तो गिला इक ज़रा छेड़िये फिर देखिये क्या होता है <br><br>
पुर हूँ मैं शिकवा से यूँ, राग से जैसे बाजा गो समझता नहीं पर हुस्ने-तलाफ़ी<brref>क्षति-पू्र्ति का सुँदर ढंग</ref> देखो इक ज़रा छेड़िये फिर देखिये क्या होता है शिकवा-ए-ज़ौर<brref>अत्याचार की शिकायत<br/ref>से सरगर्म-ए-जफ़ा होता है
गो समझता नहीं पर हुस्ने-तलाफ़ी<ref>क्षति-पू्र्ति का सुँदर ढंग</ref> देखो <br>शिकवाइश्क़ की राह में है, चर्ख़-ए-ज़ौरमकौकब<ref>अत्याचार की शिकायततारों भरा आसमान</ref> से सरगर्मकी वो चाल सुस्त-एरौ जैसे कोई आबला-जफ़ा पा होता है <br><br>
इश्क़ की राह में है, चर्ख़क्यूँ न ठहरें हदफ़-ए-मकौकबनावक-ए-बेदाद<ref>तारों भरा आसमानज़िल्म के तीर के निशाने के लिए अर्पित</ref> की वो चाल <br>कि हम सुस्त-रौ जैसे कोई आबला-पा आप उठा लाते हैं गर तीर ख़ता होता है <br><br>
क्यूँ न ठहरें हदफ़-ए-नावक-ए-बेदाद<ref>ज़िल्म के तीर के निशाने के लिए अर्पित</ref> कि ख़ूद था, पहले से होते जो हम <br>अपने बदख़्वाह आप उठा लाते कि भला चाहते हैं गर तीर ख़ता और बुरा होता है <br><br>
ख़ूद था, पहले से होते जो हम अपने बदख़्वाह <br>कि भला चाहते हैं और बुरा होता है <br><br> नाला जाता था, परे अ़र्श से मेरा, और अब <br>लब तक आता है जो ऐसा ही रसा होता है <br><br/poem>
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