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Kavita Kosh से
करे जो परतव-ए-ख़ुरशीद-आलम<ref>दुनिया के सूरज का प्रतिबिम्ब</ref> शबनमिस्तां<ref>जहाँ ओस पड़ती हो</ref> का
मेरी तामीर <ref>निर्माण</ref> में मुज़्मिर <ref>निहित</ref> है इक सूरत ख़राबी की हयूला <ref>छवि</ref> बरक़-ए-ख़िरमन <ref>खेत पर गिरने वाली बिजली</ref> का है ख़ून-ए-गरम दहक़ां का
उगा है घर में हर-सू <ref>हर तरफ़</ref> सब्ज़ा<ref>घास-फूस</ref>, वीरानी, तमाशा कर
मदार अब खोदने पर घास के है मेरे दरबां का
ख़मोशी में निहां ख़ूं-गश्ता <ref>निहित</ref> ख़ूंगश्ता<ref>ख़ून की हुई</ref> लाखों आरज़ूएं हैं चिराग़-ए-मुरदा <ref>बुझा हुआ चिराग</ref> हूं मैं बेज़ुबां गोर-ए-ग़रीबां <ref>ग़रीब की कब्र</ref> का
हनोज़ इक परतव-ए-नक़्श-ए-ख़याल-ए-यार <ref>प्रेयसी के विचार-चिन्ह का प्रतिबिम्ब</ref> बाक़ी है दिल-ए-अफ़सुर्दा गोया हुजरा <ref>कोठरी</ref> है यूसुफ़ के ज़िन्दां <ref>कैदखाना</ref>का
बग़ल में ग़ैर की आप आज सोए हैं कहीं, वरना
सबब क्या? ख़्वाब में आ कर आकर तबस्सुम-हाए-पिनहां <ref>हल्की-सी मुस्कराहट</ref> का
नहीं मालूम किस-किसका लहू पानी हुआ होगा!
क़यामत है सरश्क-आलूदा <ref>आंसुओं में भीगी</ref> होना तेरी मिज़गां <ref>पलकें</ref> का
नज़र में है हमारी जादा-ए-राह-ए-फ़ना <ref>मृत्यु का मार्ग</ref> ग़ालिब कि यह ये शीराज़ा<ref>बांधने की डोरी</ref> है आ़लम के अज्जाए-परीशां<ref>बिखरे हुए कण</ref> का
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