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Kavita Kosh से
जितने अरसे<ref>समय</ref> में मेरा लिपटा हुआ बिस्तर खुला
क्यों अंधेरी है शबे-ग़म<ref>दुःख की रात</ref>? है बलाओं<ref>मुसीबत</ref> का नुज़ूल<ref>अवतरण, जन्म</ref>आज उधर ही को रहेगा दीदा-ए-अख़्तर<ref>सितारों की आंख</ref> खुला
क्या रहूं ग़ुरबत<ref>गरीबी</ref> में ख़ुश? जब हो हवादिस<ref>हादसोंदुर्घटनाओं</ref> का यह हाल
नामा<ref>चिठ्ठी,संदेश</ref> लाता है वतन से नामाबर<ref>संदेशवाहक</ref> अक्सर खुला