भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
यां रबां<ref>बह रहा धा</ref> मिज़गाने-चश्मे-तर<ref>भीगी आँखों की पलकें</ref> से ख़ूने-नाब<ref>शुद्द रक्त</ref> था
यां सरे-पुर -शोर<ref>उन्मत्त सिर</ref> बेख़्वाबी<ref></ref> से था दीवार-जूरजू<ref>दीवार ढूँढना</ref>वां वो फ़रक़े-नाज़<ref>कोमल सिर</ref> महवे-बालिशे-कमख़वाब कमख़्वाब<ref>कीमख़ाब के तकिए पर सोया हुआ</ref> था
यां नफ़स करता था रौशन शम`शम्अ-ए बज़म-ए बेबज़मे-ख़वुदी बेख़ुदीजलवहजल्वा-ए -गुल वां बिसातबिसाते-ए सुहबतसोहबते-ए अहबाब था
फ़रश से ता `-अरश वां तूफ़ां था मौजमौजे-ए रनग रंग का यां ज़मीं से आसमां आस्मां तक सोख़तन सोख़्तन का बाब था
नागहां इस रनग से ख़ूं-नाबह टपकाने लगा
दिल कि ज़ौक़-ए काविश-ए नाख़ुन से लज़ज़त-याब था
नालह-ए दिल में शब अनदाज़-ए असर नायाब था
था सिपनद-ए बज़म-ए वसल-ए ग़ैर गो बेताब था
मक़दम-ए सैलाब से दिल कया नशात-आहनग है
ख़ानह-ए `आशिक़ मगर साज़-ए सदा-ए आब था
नाज़िश-ए अययाम-ए ख़ाकिसतर-निशीनी कया कहूं
पहलू-ए अनदेशह वक़फ़-ए बिसतर-ए सनजाब था
कुछ न की अपनी जुनून-ए ना-रसा ने वरनह यां
ज़ररह ज़ररह रू-कश-ए ख़वुरशीद-ए `आलम-ताब था
आज कयूं परवा नहीं अपने असीरों की तुझे
कल तलक तेरा भी दिल मिहर-ओ-वफ़ा का बाब था
याद कर वह दिन कि हर इक हलक़ह तेरा दाम का
इनतिज़ार-ए सैद में इक दीदह-ए बे-ख़वाब था
मैं ने रोका रात ग़ालिब को वगरनह देखते
उस के सैल-ए गिरयह में गरदूं कफ़-ए सैलाब था
</poem>
{{KKMeaning}}