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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>मिलती है ख़ू-एख़ूए-यार <ref>प्रेयसी का स्वभाव</ref> से नार <ref>आग(नरक)</ref> इल्तिहाब में <brref>लपट</ref> में काफ़िर हूँ गर न मिलती हो राहत अज़ाब में अ़ज़ाब<brref>दुःख<br/ref>में
कब से हूँ क्या बताऊँ जहाँजहां-ए-ख़राब में <br>शब हाय -हाए-हिज्र <ref>वियोग की रातें</ref> को भी रखूँ गर हिसाब में <br><br>
ता फिर न इन्तज़ार में नींद आये उम्र भर <br>आने का अहद अ़हद<ref>वादा</ref> कर गये आये जो ख़्वाब में <br><br>
क़ासिद <ref>संदेशवाहक</ref> के आते-आते ख़त इक और लिख रखूँ <br>मैं जानता हूँ , जो वो लिखेंगे जवाब में <br><br>
मुझ तक कब उन की उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम <br>साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में <br><br>
जो मुन्किर-ए-वफ़ा <ref>वफ़ा से इंकार करनेवाला</ref> हो फ़रेब उस पे क्या चले <br>क्यूँ बदगुमाँ क्यों बदगुमां हूँ दोस्त से , दुश्मन के बाब में <brref>सम्बंध<br/ref>में
मैं मुज़्तरिब <ref>बेचैन</ref> हूँ वस्ल में ख़ौफ़-ए-रक़ीब से <brref>प्रतिद्वंदी</ref> से डाला है तुम को तुमको वह्म ने किस पेच-ओ-ताब में <br><br>
मै और हिज़्ज़हज़्ज़-ए-वस्ल, ख़ुदासाज़ बात है <brref>मिलने का खुशी</ref> ख़ुदा-साज़<ref>खुदा की देन</ref> बात है जाँ जां नज़्र देनी भूल गया इज़्तिराब में <brref>विकलता<br/ref>में
है तेवरी चढ़ी हुई अंदर नक़ाब के <br>है इक शिकन पड़ी हुई तर्फ़-ए-नक़ाब में<br><br>
लाखों लगाव, इक एक चुराना निगाह का <br>लाखों बनाव, इक एक बिगड़ना इताब में <brref>गुस्सा<br/ref>में
वो नाला दिल में ख़स के बराबर जगह न पाये <br>जिस नाले से शिगाफ़ पड़े आफ़ताब में <brref>सूरत<br/ref>में
वो सेह्र मुद्दा तल्बी सेह़र<ref>जादू-मंत्र</ref> मुद्दआ़-तलबी<ref>इच्छापूर्ती</ref> में न काम आये <br>जिस सेह्र सेहर से सफ़िना रवाँ सफ़ीना<ref>नाव</ref> रवां<ref>चलता</ref> हो सराब में <brref>मरीचिका<br/ref>में