भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विचित्र सभा / रघुवीर सहाय

2 bytes added, 19:05, 7 मार्च 2010
विजय चौधरी से मैं कहता हूँ-तुम यह लो नेताओं पर तान दो
वह (मेरे हाथ में एक बन्दूक है) बैठा रह जाता है
मैं ही तुरन्त यह सोचकर कि मैं जो कर रहा हूँ इस वक्तवक़्त
::::::::::वही सही है
मैं बहुत अर्थ भरे स्वर में कहता हूँ आप ही की तरफ़
अर्थात मैं जो कर रहा हूँ देश के हित में
:::::::और आपके हित में कर रहा हूँ<
आप हमें स्वाकारें
रघुपति विस्मय में पड़कर मुझे एक क्षण देखते हैं
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,186
edits