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घिसी पैंसिल / रघुवीर सहाय

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|रचनाकार=रघुवीर सहाय |संग्रह =कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ / रघुवीर सहाय
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<poem>
फिर रात आ रही है
 
फिर वक़्त आ रहा है
 जब नींद दु:ख दुःख दिन को 
संपूर्ण कर चलेंगे
 
एकांत उपस्थित हो,'सोने चलो' कहेगा
 
क्या चीज़ दे रही है यह शांति इस घड़ी में ?
 
एकांत या कि बिस्तर या फिर थकान मेरी ?
 
या एक मुड़े काग़ज़ पर एक घिसी पैंसिल
 
तकिये तले दबा कर जिसको कि सो गया हूं ?
  ('कु़छ पते कुछ चिट्ठियां' नामक कविता-संग्रह से )</poem>
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