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अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये |
 
नयी ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उषा जा न पाये, निशा आ ना पाये |
 
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये |
 
स्रजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
भले ही दिवाली यहां रोज आये |
 
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये |
 
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
स्वय धर मनुज दीप का रूप आये |
 
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये |
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