भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब|संग्रह= दीवान-ए-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किये हुए
जोश-ए-क़दह<ref>प्यालों की भरमार से</ref> से बज़्म-ए-चिराग़ां किये हुए
फिर वज़ागर्म-एनाला हाये-एहतियात शररबार<ref>आग बरसाने वाले से रुकने लगा है दम आर्तनाद में लीन<br/ref>है नफ़स बरसों हुए हैं चाक गिरेबाँ किये हुए मुद्दत हुई है सैर-ए-चिराग़ां<brref>दीपोत्सव की सैर<br/ref>किये हुए
फिर गर्मनाला हाये शररबार है नफ़स पुर्सिश-ए-जराहत-ए-दिल<brref>मुद्दत हुई दिल के घाव का हालचाल पूछना</ref> को चला है सैरइश्क़ सामान-ए-चराग़ाँ किये हुए सद-हज़ार-नमकदां<brref>लाख़ों नमकदान लिए हुए<br/ref>किये हुए
फिर पुर्सिशभर रहा है ख़ामा-ए-जराहतमिज़गां<ref>पलकों की लेखनी</ref> ब-ख़ून-ए-दिल को चला है इश्क़ <br>सामाँसाज़-ए-सदहज़ार नमकदाँ किये हुए चमन-तराज़ी-ए-दामां<brref>दामन पर फूलों के चमन खिलाने का प्रबंध<br/ref>किये हुए
दौड़े है फिर शौक़ कर रहा है ख़रीदार की तलब <br>अर्ज़-ए-मता-ए-अक़्लहरेक गुल-ओ-दिल-ओलाला पर ख़याल सद-जाँ गुलसितां निगाह का सामां किये हुए <br><br>
माँगे है फिर चाहता हूँ नामाकिसी को लब-ए-दिलदार खोलना बाम<brref>होठों पर</ref> पर हवस<ref>तीव्र लालसा</ref>जाँ नज़रज़ुल्फ़-ए-दिलफ़रेबी-ए-उन्वाँ किये हुए सियाह रुख़ पे परेशां<brref>कोली ज़ुल्फ़ें चेहरे पर बिखेरे हुए<br/ref>किये हुए