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Kavita Kosh से
पुलक-स्पर्श का पता नहीं,
टकराती होगी अब उनमें
दिग्दाहों से धूम उठे,
या जलचर जलधर उठे क्षितिज-तट के
सघन गगन में भीमप्रकंपन,
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