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खिंची आवेगी सकल समृद्धि।
 
 
देव-असफलताओं का ध्वंस
 
प्रचुर उपकरण जुटाकर आज,
 
पडा है बन मानव-सम्पत्ति
 
पूर्ण हो मन का चेतन-राज।
 
 
चेतना का सुंदर इतिहास-
 
अखिल मानव भावों का सत्य,
 
विश्व के हृदय-पटल पर
 
दिव्य अक्षरों से अंकित हो नित्य।
 
 
विधाता की कल्याणी सृष्टि,
 
सफल हो इस भूतल पर पूर्ण,
 
पटें सागर, बिखरे ग्रह-पुंज
 
और ज्वालामुखियाँ हों चूर्ण।
 
 
उन्हें चिनगारी सदृश सदर्प
 
कुचलती रहे खडी सानंद,
 
आज से मानवता की कीर्ति
 
अनिल, भू, जल में रहे न बंद।
 
 
जलधि के फूटें कितने उत्स-
 
द्वीफ-कच्छप डूबें-उतरायें।
 
किन्तु वह खडी रहे दृढ-मूर्ति
 
अभ्युदय का कर रही उपाय।
 
 
विश्व की दुर्बलता बल बने,
 
पराजय का बढता व्यापार-
 
हँसाता रहे उसे सविलास
 
शक्ति का क्रीडामय संचार।
 
 
शक्ति के विद्युत्कण जो व्यस्त
 
विकल बिखरे हैं, हो निरूपाय,
 
समन्वय उसका करे समस्त
 
विजयिनी मानवता हो जाय"।
 
 
''''''''''''''''''''-- Done By: Dr.Bhawna Kunwar''''''''''''''''''''
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