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{{KKGlobal}}{{KKAnooditRachna|रचनाकार== 1. ज्यूंनि अर मौत ==नवीन जोशी ’नवेंदु’ |संग्रह=}}'''हिंदी भावानुवाद [[Category: जिन्दगी और मौत'''कुमाउनी भाषा]]{{KKCatKavita}}जिन्दगी <poem> ज़िन्दगी और मौत
हैं नदी के दो किनारे
बिना पूरी नदी पार किऐकिए
या कूद कर नहीं मिल सकते दोनों
एक दूसरे के प्रेमी दिन भर
एक दूसरे को दूर से ही
देख-देख कर
बुझाते है प्यास।
पर रात में जब सब सो जाते हैं
दोनों मिलते हैं
लोग कहते हैं-
हम सो रहे हैं।
वह एक दूसरे को बांहों बाँहों में भरते हैं
लाड़-प्यार करते हैं
जाने किस-किस लोक में
और न मौत
लोग कहते हैं-
हम सपने देख रहे हैं।
घूमते-फिरते
कब रात बीत जाती है
पता ही नहीं चलता,
वे एक दूसरे को छोड़ना ही नहीं चाहते
इस समय लोग जगना/उठना ही नहीं चाहते।
फिर जिस दिन सहा नहीं जाता
या मौत ही
जन्म-जन्म के
दुनियां के सबसे बड़े प्रेमी
मिल कर एक हो जाते हैं
लोग भी रोने लगते हैं
फूल चढ़ाते हैं उनके मिलन पर।
युग-युगों तक
फिर रहते हैं वो साथ
पर मिलना-बिछुड़ना दुनिया का नियम
एक दिन मौत नाराज नाराज़ हो
छोड़ देती है जीवन का साथ
रोने लगती है जिन्दगीज़िन्दगी
रोते-रोते भी
बिछुड़ना पड़ता है उसे मौत से
जाना पड़ता है
नऐ वस्त्र पहन
नई दुनियां दुनिया में
बन कर नई काया।
मौत की जुड़वा बहन `माया´
उसी की तरह
दिखने वाली,
उसे वही समझ
लग जाता है वह
उसी के पीछे।
ज्यूनि अर मौत
छन गाड़ाक द्वि किना्र
बिन पुरि गाड़ तरि
फटक मारि नि मिलि सकन द्वियै
ए दुसरा्क पिरेमी दिन भर
ए दुसा्र कैं टाड़ै बै
निमूनीं तीस चै-चै
पर रात में जब सब सिति जा्नीं
द्वियै मिलनीं
मैंस कूनीं-
हम नींन गा्ड़नयां।
उं ए दुसा्र कैं भेटनीं
अंग्वाल खितनीं
लाड़ करनीं-प्यार करनीं
जांणि को-को लोकन में
जां इकलै न ज्यूनि जै सकें
न मौत
वां घुमनीं,
मैंस कूनीं-
हम स्वींण द्यखनयां।
घुमनै-फेरीनै
कब रात ब्यै जैं
पत्तै न चलन
उं ए दुसा्र कैं छोड़नै न चान
मैंस य बखत बिजण न चान।
फिर जदिन अथांणि है जें
ज्यूनि मौता्क तिर पुजि जैं
कि मौतै...
ज्यूंनि कैं ल्हिजांण हुं ऐ जैं।
जनम-जनमा्क
दुणिया्क सबूं है ठुल पिरेमी
मिलि जा्नीं
इकमही जा्नीं
खुसि इतू है जैं
डाड़ ऐ जैं
मैंस लै डाड़ मारंण भैटनीं
फूल चड़ूनीं उना्र मिलंण पा्रि।
जुग-जुगन तलक
रूनीं फिरि उं दगड़ै
पर, मिलंण-बिछुड़ंण
दुणियौ्क नियम...
ए दिन मौत रिसै बेर
छ्वेणि दिं ज्यूनिक दगड़,
डाड़ मारंण फैटि जें ज्यूंनि
डाड़ मारंन-मारनै
बिछुड़ण पड़ूं मौत बै
जांण पड़ूं
नई लुकुण पैरि
नईं दुनीं में,
बंणि बेर नई काया
वां मिलें उकें
मौतैकि जौंया बैंणि माया
वीकि´ई चारि
द्येखींण चांण...
उकें वी समझि
लागि जैं उ
वीकि पिछाड़ि।
</poem>