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{{KKFilmRachna
|रचनाकार=शकील् बदयुनिशकील बदायूनी
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अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नही,अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नही,नहींसर कटा सकते है हैं लेकिन सर झुका सकते नही,सर झुका सकते नही,नहीं
हमने सदियॊ सदियों में ये आज़ादी कि की नेमत पाई है,हमने ये नेमत पाई है,सैकड़ों सैंकड़ों कुर्बानियाँ देकर ये दौलत पाई है,हमने ये दौलत पाई है,मुस्कुरा कर खाई है हैं सीनों पे अपने गोलियाँ,सीनों पे अपने गोलियाँ,गोलियांकितने वीरानो से गुज़रे है हैं तो जन्नत पाई है।हैख़ाक मॆ में हम अपनी इज्ज़़त को मिला सकते नहीं,अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं,...
क्या चलेगी ज़ुल्म की, अहले -वफ़ा के सामने,अहले वफ़ा के सामने,आ नही नहीं सकता कोई, शोला हवा के सामने,शोला हवा के सामने,लाख फ़ौजें ले के आए अमन का दुश्मन कोई,लाख फ़ौजें ले के आए अमन का दुश्मन कोई,रुक नही नहीं सकता हमारी एकता के सामने,हम वो पत्थर है हैं जिसे दुश्मन हिला सकते नहीं,अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...
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