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|रचनाकार= बिस्मिल अज़ीमाबादी (राम प्रसाद बिस्मिल)
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सरफ़रोशी सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर जोर कितना बाज़ूबाजू-ए-क़ातिल कातिल में है...
(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ क्यों दूसरा कुछ बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में हैऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, महफिल मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में हैसरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है...
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान, हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल यों खड़ा मक़्तल में कातिल कह रहा हैबार-बारखेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद, आशिकों का आज जमघट कूचाक्या तमन्ना-ए-क़ातिल में हैसरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे शहादत भी किसी के दिल में है...
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर, और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधरऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसारख़ून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्क़िल में है, सरफ़रोशी अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की तमन्ना अब हमारे दिल महफिल में है...
हाथवक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार हम अभी से, सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार सेऔर भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब क्या बतायें क्या हमारे दिल में है...
हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़नखींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मीद, जां हथेली पर लिए लो बढ़ चले हैं ये कदमज़िंदगी तो अपनी मेहमां मौत की महफ़िल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल आशिकों का आज जमघट कूचा-ऐ-कातिल में है...
यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार, क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब, होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आजदूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है, सरफ़रोशी सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है..., वो जिस्म भी क्या जिस्म देखना है जिसमे न हो ख़ूनजोर कितना बाजू-ए-जुनून, क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में हैसरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल कातिल में है...
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