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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' |संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथ…
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{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
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<poem>
सुनीं गुनीं समझी तिहारी चतुराई जिती
::कान्ह की पढ़ाई कविताई कुबरी की हैं ।
कहै रतनाकर त्रिकाल हूँ त्रिलोक हूँ मैं
::आनैं हम नैकु ना त्रिवेद की कही की हैं ॥
कहहि प्रतीति प्रीति नीति हूँ त्रिबाचा बांधि
::ऊधौ सांच मन की हिये की अरु जी की हैं ।
वे तो हैं हमारे ही हमारे ही हमारे ही औ
::हम उनहीं की उनहीं की उनहीं की हैं ॥60॥
</poem>
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सुनीं गुनीं समझी तिहारी चतुराई जिती
::कान्ह की पढ़ाई कविताई कुबरी की हैं ।
कहै रतनाकर त्रिकाल हूँ त्रिलोक हूँ मैं
::आनैं हम नैकु ना त्रिवेद की कही की हैं ॥
कहहि प्रतीति प्रीति नीति हूँ त्रिबाचा बांधि
::ऊधौ सांच मन की हिये की अरु जी की हैं ।
वे तो हैं हमारे ही हमारे ही हमारे ही औ
::हम उनहीं की उनहीं की उनहीं की हैं ॥60॥
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