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15:28, 26 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
कान्ह कूबरी के हिए हुलसे-सरोजनि तैं
::अमल अनन्द-मकरन्द जो ढरारै है ।
कहै रतनाकर यौं गोपी उर संचि ताहि
::तामैं पुनि आपनौ प्रपंच रंच पारै है ॥
आइ निरगुन-गुन गाइ ब्रज मैं जो अब
::ताकौ उदगार ब्रह्मज्ञान-रस गारै है ।
मिलि सो तिहारौ मधु मधुप हमारैं नेह
::देह मैं अछेह विष विषम बगारै है ॥75॥
</poem>