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मैं और बज़्मे-मै से / ग़ालिब

129 bytes added, 01:50, 27 मार्च 2010
{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब
|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
मैं और बज़्मे-मै,<ref>शराब की महफ़िल</ref> से यूं तश्नाकाम<ref>प्यासा</ref> आऊं!गर मैंने की थी तौबा , साक़ी को क्या हुआ था?
है एक तीर , जिसमें दोनों छिदे पड़ें हैंवो दिन गए , कि अपने अपना दिल से जिगर जुदा था
दरमान्दगी<ref>दुख</ref> में 'ग़ालिब' , कुछ बन पड़े तो जानूंजब रिश्ता बेगिरह <ref>बिना गांठ के</ref> था , नाख़ून गिरह-कुशा<ref>गांठ खोलनेवाला</ref> था
</poem>
{{KKMeaning}}
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