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अजनबी शहर के / राही मासूम रज़ा
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05:05, 28 मार्च 2010
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे
ज़ह्र्
ज़ह्र
मिलता रहा
ज़ह्र्
ज़ह्र
पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे
ज़िंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे
द्विजेन्द्र द्विज
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