भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
}}
[[Category:गज़ल]]
<poem>दिन सलीक़े से उगा, रात ठिकाने से रही <br>
दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही
चंद लम्हों को ही बनती हैं मुसव्विर आँखें <br>
ज़िन्दगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रही
इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी <br>
रात जंगल में कोई शम्मा जलाने से रही
फ़ासला चाँद बना देता है हर पत्थर को <br>
दूर की रौशनी नज़दीक तो आने से रही
शहर में सब को कहाँ मिलती है रोने की फ़ुरसत <br>
अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हँसने-हँसाने से रही
</poem>