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|रचनाकार=फ़ानी बदायूनी
|संग्रह=
}}<poem>
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>इश्क़ ने दिल में जगा जगह की तो क़ज़ा <ref>मृत्यु</ref> भी आई
दर्द दुनिया में जब आया तो दवा भी आई
दिल जब आया तो धड़कने की सदा भी आई
बिजलियाँ लेके नशेमन पे घटा भी आई
हाँ! न था बाब-ए-अस्र असर<ref>असर की दरवाजा</ref> बन्द, मगर क्या कहिये
आह पहुँची थी कि दुश्मन की दुआ भी आई
मौत मुश्ताक़ को मिट्टी में मिला भी आई
लो! मसिहा मसीहा ने भी, अल्लाह ने भी याद किया
आज बीमार को हिचकी भी, क़ज़ा भी आई
देख ये जादा-ए-हस्ती <ref>ज़िन्दगी की राह</ref> है, सम्भल कर `फ़ानी’ पीछे पीछे वो दबे पाओँ पावँ क़ज़ा भी आई</poem>{{KKMeaning}}