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मेरा अख़बार / कुमार सुरेश

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[[मेरा अखबार]]{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार सुरेश}}{{KKCatKavita‎}}<poem>उगते सूरज के गुलाबी प्रकाश में नहाया स्याह अक्षरों से भरा अखबार अख़बार गिरता है घर के दरवाजे दरवाज़े पर
पहला पेज खोलते ही
परोसने लगता है डरावनी खबरें ख़बरें
करता है
क्रांति का आह्वान
कोई उपभोक्ता वस्तु
खरीदने को कहता है
हिंदी का मेरा अखबार अख़बार
पिछड़ा बता हिंदी को
हिंगलिश सीखने की करता वकालत
प्रेम, अभिसार और गर्भधारण का वात्स्यायन
जब मेरी किशोर बेटी इसे पढने पढ़ने बैठती है
मैं सहम कर दूर हट जाता हूँ
वह किसी अश्लील विज्ञापन का निहितार्थ
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