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वह चेहरा / भरत प्रसाद

886 bytes added, 06:14, 29 मार्च 2010
और मैं निकम्मा-सा
चुपचाप बैठा हुआ हूँ!
 
हमें इसके लिए भी
माफ़ कर देना
कि हमारी रगों में
तुम्हारे दूध का ख़ून नहीं
गंदा-सा कायरपन दौड़ रहा है!
 
हमें वैसा बिल्कुल मत समझना
जैसा कि लोग कहते हैं
हमें गर समझना है
तो बंजर को समझना
नाले को समझना
घास चरने के दौरान
मुँह में चुभते हुए काँटे
और गर्दन में धँसे हुए हथियार को समझना।
 
हमें माफ़ कर देना
हम तुम्हारी तरह पशु नहीं
बुद्धिमान आदमी हैं!
 
</poem>
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