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प्रभू मोरे अवगुण चित न धरो ।निर्विकल्प आकार विहीना, मुक्ति, बंध- बंधन सों हीना<br>समदरसी है नाम तिहारो चाहे मैं तो पार करो ॥परमब्रह्म अविनाशी, परे, परात्पर परम प्रकाशी<br>एक जीव एक व्यापक विभु मैं ब्रह्म कहावे सूर श्याम झगरो ।अरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा<br>अब की बेर मोंहे पार उतारो नहिं पन जात टरो ॥चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा<br>
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कविता कोश में [[सूरदासमृदुल कीर्ति]]
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