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{{KKRachna
|रचनाकार= जावेद अख़्तर
|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर
}}
[[Category:गज़लग़ज़ल]]<poem>दिल में महक रहें रहे हैं किसी आरज़ू के फूल <br>पलकों में खिलने वाले खिलनेवाले हैं शायद लहू के फूल <br><br>
अब तक है कोई बात मुझे याद हर्फ़ -हर्फ़ <br>अब तक मैं चुन रहा हूँ किसी गुफ़्तगू के फूल <br><br>
कलियाँ चटक रही थी कि आवाज़ थी कोई <br>अब तक सम'अतों समाअतों<ref>सुनने की शक्ति</ref> में है हैं इक ख़ुश-गुलू के फूल ख़ुशगुलू<brref>अच्छी आवाज़ वाला<br/ref>के फूल
मेरे लहू का रंग है हर नोक-ए-ख़ार पर <brref>कांटे की नोक</ref> पर सेहरा <ref>वीराना</ref> में हर तरफ़ है मेरी मिरी जुस्तजू के फूल <brref>तलाश<br/ref>के फूल
दीवाने कल जो लोग थे फूलों के इश्क़ में <br>अब उन के उनके दामनों में भरे हैं रफ़ू के फूल <br><br/poem>{{KKMeaning}}
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